पैर टूटा आंस नही, शारीरिक तकलीफों के बीच भी कैसे अपने घर पहुचने का है जुनून…

हम तो बेबस होकर चल पड़े थे पैदल ही अपने घोंसले के तरफ बदकिस्मती इतनी एक शराबी ने हौसलों के पैरों को ही तोड़ दिया,,मजदूर इतना मजबूर हुआ कि तड़पते हुए बिना मदद मिले पुस्तैनी जमीन को बेचकर पहुचा वो भी अपने अधूरी मंजिल…

कोरोना संकट ने इस दौर में क्या क्या रंग ना दिखाए जिसने भी देखा वही दांतो तले उंगली दबा लिया और मुह से निकला तो बस इतना ही हे ईश्वर ये क्या दिन दिखा रहे हो…

ये कहानी नही सच्चाई है… दुर्ग जिले के जिला अस्पताल में दूसरे प्रदेशों से आने वाले संदिग्द्धो की जांच के लिए फीवर क्लिनिक बनाया गया है. लगातार जांच के लिए बढ़ रही भीड़ का जायजा लेने जब हम पहुचे तो एक शख्श स्ट्रेचर पर बैठा नजर आया जिसके एक पैर पर पट्टी बंधी हुई थी,,हमने उसका हाल जानने की कोशिश की जब उसने इस हालत के बारे में बताया तो लगा वाकई बहुत बुरा वक्त आन पड़ा है जहां मजदूर बहुत ही मजबूर है.

इस मजदूर की हालत ऐसे करने वाला कोई और नही सरकारी तंत्र के आदेशों का हिस्सा है जी हां पुणे के चिंचवड़ से अपने दो बेटों और एक साथी समेत चार लोग जब कोई मदद सरकार से घर वापसी की मिलती नजर नही आई तो शख्श पैदल ही निकल पड़े अपने घर की ओर,,रास्ता आसान नही था पर जाने की भी मजबूरी थी क्योकि खतरा जो इतना बड़ा था,,अहमदनगर से पार होने के बाद औरंगाबाद महज 40 किलोमीटर बचा था कि रात लगभग 8.30 बजे सड़क के किनारे पैदल चलते वक्त एक मोटरसायकल सवार शराब में धूत्त व्यक्ति ने जोरदार ठोकर मार दी.

इस एक्सीडेंट में मजबूर मजदूर का एक पैर नही बल्कि उसकी उम्मीद ही टूट गई. दोनो बेटे और साथी ने लोगो से मदद की बहुत गुहार लगाई पर वाह रे सिस्टम किसी ने मदद नही की,,स्थानीय पुलिस ने अहमदनगर के सिविल अस्पताल पहुचा दिया जहा थोड़े से उपचार के बाद उसे दूसरे दिन डिस्चार्ज कर दिया,,दर्द और पैसे ना होने की मजबूरी साथ ही घर वापस होने की चाह ये सब एक सपने जैसे लगने लगा.

टूटे पाव से हाथ जोड़कर लोगो से घर वापसी का निवेदन करते रहा लेकिन कोई मदद ना मिली,,करता भी तो क्या आखिरकार उसने अपने घर वालो से संपर्क किया कि कुछ पैसे जुगाड़ हो जाये लेकिन इस विपदा किं घडी में उन्होंने भी मदद नही कर पाई तब आखिर में अपने पुस्तैनी पड़ी 30 डिसमिल जमीन को बेचने का सौदा कर कुल 40 हजार रुपये की व्यवस्था की. पैसे खाते में आने के बाद एक एम्बुलेंश के सहारे सभी छत्तीसगढ़ के बॉर्डर बाघ नदी तक पहुचे.

आगे घायल हेमंत ने भिलाई निवासी अपने जीजा से बॉर्डर से दुर्ग पहुचाने की गुहार लगाई,,जीजा ने कार के जरिये सभी को दुर्ग जिला अस्पताल पहुचाया. एम्बुलेंश वाले ने इस मजदूर से बॉर्डर तक छोड़ने के बाद दोनों तरफ के 27 हजार 4 सौ रुपये अहमदनगर से आने के लिए… इस मजदूर का दुर्ग के फीवर क्लिनिक में कोरोना का जांच हुआ. उसके बाद जिला अस्पताल से घायल सहित चारो को एक वाहन के जरिये बेमेतरा जिला पहुचाया गया जहां घायल को वर्तमान में आईशोलेशन सेंटर में रखा गया है लेकिन अब भी टूट चुके पैर का इलाज जांरी नही हुआ. इस मजदूर को दर्द के बाद भी इस बात की खुशी है कि आखिरकार वो भले ही अपने घर तो ना पहुच पाया तो क्या लेकिन अपनो की बीच जरूर पहुच गया.

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