वाह रे सरकारी तंत्र: मासूम बच्ची साथ हुआ दुष्कर्म और अधिकारियों ने बच्ची को ही मानसिक रोगी साबित कर दिया

वाह रे सरकारी तंत्र मासूम बच्ची पर भी तरस न आई खत्म हो चुकी संवेदना।

मासूम बच्ची के साथ चार दिनों तक दुष्कर्म हुआ और अधिकारियों ने बच्ची को ही मानसिक रोगी साबित कर डाला न अपराध दर्ज न मेडिकल चेकअप पीड़ित बच्ची को अस्पताल की जगह बालिका गृह भेज कर पूरा सरकारी अमला हुआ बेफिक्र जानिए इस हैवानियत के पीछे कौन कौन जिम्मेदार गुनहगार।

रीतेश तिवारी/दुर्ग :- प्रदेश का सबसे चर्चित शहर दुर्ग जहा सीएम से लेकर गृहमंत्री तक निवास करते है उसी जिले में प्रशासनिक अधिकारियो ने गंभीर मामले में त्वरित कार्यवाही करने की वजाय पूरे मामले को ही दबा डाला है जी है 12 साल की मासूम बच्ची के साथ हुई हैवानियत की ये दर्दनाक दास्तान है जिसे अब न्याय की कोई उम्मीद नही है । बीते 3 मार्च को दुर्ग रेलवे स्टेशन में खड़ी दुर्ग अम्बिकापुर ट्रेन में एक 12 साल की मासूम बच्ची चीख चीख कर रोती हुई मिली थी। जीआरपी दुर्ग ने बच्ची को चाइल्ड लाइन की टीम को बुला कर बच्ची को सुपुर्द कर दिया था। जेजे एक्ट के नियमानुसार चाइल्ड लाइन ने दुर्ग सीडब्लूसी के समक्ष पेश किया जहां बच्ची का बिना मेडिकल कराये बिना प्राथमिक अपराध दर्ज कराए सीधे बालिका गृह राजनांदगांव भेज दिया गया । राजनांदगांव बालिका गृह ने बच्ची की काउंसलिंग की जिसके बाद बच्ची के साथ चार दिनों तक दुष्कर्म किया गया है इसकी पुष्टि हुई लेकिन बिडंबना तो देखिए बच्ची का बेहतर इलाज हो बेहतर देख रेख होने की जगह सीधे उसे मानसिक रोगी बनवा दिया गया और एक ही दिन में मानसिक रोगी का प्रमाण पत्र भी जारी हो गया जिसमें बच्ची 50 प्रतिशत मानसिक रोगी है साबित कर दिया गया । बालिका गृह से बच्ची को पुनः दुर्ग भेज दिया गया उसके बाद बच्ची को महिलाओं के साथ रहने सखी सेंटर दुर्ग भेज दिया गया जहां से बच्ची भागने में कामयाब भी हो गयी थी लेकिन अगले ही दिन बच्ची को तलाश लिया गया और सीधे बाल जीवन ज्योति बालिका गृह रायपुर भेज कर गंभीर घटना में पर्दा डाल दिया गया।

राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक बच्चो की सुरक्षा पोषण संरक्षण को लेकर हर साल कई करोड़ रुपय खर्च कर रही है देश मे बने बच्चो के देख रेख के लिए कठोर कानून भी बने है लेकिन दुर्ग के प्रशासनिक अधिकारीयो के कारनामे देख मानो इनकी संवेदना खत्म हो चुकी हो । दफ्तर में बैठे ये अधिकारी सरकार के वेतन और कमीशन के मोहताज हो चुके है जमीनी अस्तर में काम करना इन्हें गुनाह लगता है। कागजो में हेर फेर कर अपनी गरिमा बचाने में जुटे हुए है।

जरा सुनिये ये है जिले के जिम्मेदार अधिकारी जिनके पास जवाब भी देने लायक नही बचा है।

विपिन जैन जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास विभाग दुर्ग

मुझे जानकारी नही है कब क्या हुआ सीडब्लूसी ने अगर कोई पत्र भेजा होगा तो आवक जावक में आया होगा देखता हूं क्या मामला है। घटना के 16 दिन बीत चुके है पत्र भी मिल चुका है जानते भी सब कुछ है लेकिन कहने को कुछ बचा नही क्यो की कुछ इन्होंने किया ही नही।

अध्यक्ष सीडब्लूसी दुर्ग

नियमानुसार कार्यवाही चल रही है पुलिस अपराध दर्ज करेगी हम कोशिस में लगे है। न्यायिक पीठ में बैठे है ये और अभी तक एफआईआर तक दर्ज नही करा पाए तो जांच क्या होगी आप समझ गए होंगे।

थाना प्रभारी मोहन नगर थाना दुर्ग

सीडब्लूसी से पत्र मिला है लेकिन उसमें घटना कहा हुई है ये नही बताया गया है पुनः घटना स्थल के बारे में जानकारी मांगी गयी है घटना पता होने के बाद ही एफआईआर दर्ज हो सकती है उसके बिना हम अपराध दर्ज नही कर सकते।

जेजे एक्ट के मुताबिक अगर कोई भी नाबालिक बच्चा मिलता है तो सबसे पहले उसकी विधिवत काउंसलिंग किया जाना है उसके बाद अगर लगता है कि बच्ची या बच्चे के साथ कोई अप्रिय घटना घटित हुई है तो त्वरित एफआईआर दर्ज कर एमएलसी यानी मेडिकल चेकअप कराया जाने का प्रावधान है लेकिन इस गंभीर मामले में बच्ची को ही मानसिक रोगी बनाया गया और इलाज की जगह बालिका गृह भेज दिया गया ये जानते हुए भी की इसके साथ हैवानियत हुई है फिर भी सभी ने अपना पल्ला झाड़ लिया । पुलिस ने भी नियमो का खेल खेला और प्रशासनिक अधिकारियों ने भी कागजी कार्यवाही की खानापूर्ति कर राहत की सांस लिए बैठे है। अब तो सिर्फ जनप्रतिनिधि मंत्री और विधायक की भूमिका बची है कि आखिर घटना को जानने के बाद इनके तरफ से कोई पहल होती है की नही देखना होगा।

जेजे एक्ट के नियमों की जम कर उड़ाई गई धज्जियां। दुष्कर्म पीड़ित बच्ची का न मेडिकल कराया गया न हुई एफआईआर।

 सीडब्लूसी के अध्यक्ष के निर्देश का पालन नही करती दुर्ग पुलिस निर्देश मिलने के बाद भी नही हुआ अपराध दर्ज।

जिले में बच्चो के मामले को लेकर डीएसपी रैंक के अधिकारी भी नियुक्त किये गए है जिनका काम सिर्फ बच्चो के मामले को देखना है एडिशनल एसपी तक मौजूद है लेकिन ये अपना मूल कार्य छोड़ कर किसी ने कार्यो में लगे हुए है इन्हें बच्चो के मामले से कोई मतलब नही है।

घटना के 16 दिन बीत जाने के बाद भी थाने में अपराध दर्ज न होना पुलिसया कर्यवाही पर गम्भीर सवाल खड़े करता है।

 

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